Sunday, July 3, 2016

मज़ा कुछ और हैं















मज़ा कुछ और हैं

समुन्‍द्र के किनारे खड़े, निहारने से नहीं कुछ….
समुन्‍द्र की लहरों से टकराने का मज़ा कुछ और हैं
किसी का साहारा लेने में वो नहीं
जो किसी का साहारा बनने में हैं
प्‍यार में याद करने से कुछ नहीं
किसी के दिल में याद बन कर धंडकने में हैं
किसी के एहसासों से तड़पने में कुछ नहीं
किसी को अपने एहसासों से तड़पाने में है
किसी से बिछड़ने ,में वो नहीं….
जो किसी बिछड़े से मिलने में हैं
किसी के प्‍यार में जलने से कुछ नहीं……….
अपने प्‍यार से उसको जलाने का मज़ा कुछ और हैं
:-@अभिषेक शर्मा

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