Wednesday, November 16, 2016

पैसों का खेल






















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पैसों का कैसा अलग ही खेल है
वृद्ध माँ-बाप का फिर से मेल है
नकली रिश्तों को अब जान लो
यही कलियुग की बडी सी जेल है
प्रेम से भरा सब का जीवन हो
हरा भरा रिश्तों का उपवन हो
असली धन है मानव की सेवा
हर प्राणी का दोष मुक्‍त मन हो
________अभिषेक शर्मा अभि

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