अभिषेक शर्मा
Sunday, January 22, 2017
पहेली
---------------------------------------------------
उलझनों से भरी जिन्दगी की पहेली है।
चंद लकीरों मे सिमटी ये मेरी हथेली है ।
दुर तक मुझे यहां कोई नजर नहीं आता,
घर-द्वार पड़े सूने काटती ये हवेली है।
________________अभिषेक शर्मा
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment