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सुन्दर रूप प्रेम अनुराग से हर लिया मेरा मन है
बदला मौसम खिल गये नैना हुआ उनका आगमन है
चंचल करती उसकी मधुर बोली हूँ सुनने को आतुर
दूर भला में कैसे जाऊँ लगता उनमे अब अपनापन है
सुन्दर रूप प्रेम अनुराग से हर लिया मेरा मन है
बदला मौसम खिल गये नैना हुआ उनका आगमन है
चंचल करती उसकी मधुर बोली हूँ सुनने को आतुर
दूर भला में कैसे जाऊँ लगता उनमे अब अपनापन है
दुर्बल होता ही जाये ये मन उनके विराग में
रात दिन जलता ही जाये मन प्रेम के चिराग में
अन्धकार की पीड़ा ना सह पाऊँ है चांदनी रात
प्रतिक्षा मे तेरी मुरझा गये फूल प्रेम के बाग में
अभिषेक शर्मा अभि
रात दिन जलता ही जाये मन प्रेम के चिराग में
अन्धकार की पीड़ा ना सह पाऊँ है चांदनी रात
प्रतिक्षा मे तेरी मुरझा गये फूल प्रेम के बाग में
अभिषेक शर्मा अभि
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स्वंयरचित रचना सर्वाधिकार प्राप्त
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