जीवन तो सम्पूर्ण प्रेम का मेला है।
फिर क्यों खड़ा तू दूर अपनों से अकेला है ।
कितने महान कर्मो का यह दर्पण है।
मानव हित और ईश्वर भक्ति में ही सर्मपण है ।
पवित्र रख मन यह तो देव निवास है।
मत कर अधर्म होता फिर बड़ा ही विनाश है ।
कलियुग का भी बडा विचित्र प्राणी है।
अहंकार माया से भरा क्रोध में इसकी वाणी है।
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