Sunday, January 22, 2017

पहेली


















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उलझनों से भरी जिन्दगी की पहेली है।
चंद लकीरों मे सिमटी ये मेरी हथेली है ।
दुर तक मुझे यहां कोई नजर नहीं आता, 
घर-द्वार पड़े सूने काटती ये हवेली है।
________________अभिषेक शर्मा

प्रकृति माँ


















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सारे जग की एक ही सच्चाई है
बिन माँ ज़िन्दगी भी पराई है
राहो से नही भटकुँगा कभी में
साथ हर पल माँ तेरी परछाई है
___________अभिषेक शर्मा

परमेश्वर




















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एक दिन दूर ये कलियुग का अंधेरा होगा 
जब दिशा बदलेगी तो एक सबेरा होगा
अस्त होगी झूठी चमक मोह माया की
उस दिन धरती पर प्रेम का ही घेरा होगा ।

घनघोर घटा मद मस्त नीला अम्बर है
शीतल प्रवाह मे मोहित मन की लहर है
मिट गया अंधेरा उदय ज्ञान का सूरज
आनंदित मन समक्ष प्रत्यक्ष परमेश्वर है।
_________________अभिषेक शर्मा

कल्पना



















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कल्पना से बनी एक चिड़िया रानी है।
लिखी किताबों मे सुन्दर सी कहानी है।
पढ़ लिये कुछ पन्ने और थोड़े हैं बाकी 
खत्म न होती यह दुनिया आसमानी है।
________________अभिषेक शर्मा

अनुकूल



















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क्रोध, मोह, माया जीवन का अन्धकार है 
कठिन पथ परिश्रम से प्राप्त अधिकार है
सत्य का मार्ग होता है सदा ही अनुकूल
अहिंसा और मानव हित जीवन का सार है
जीवन तो प्रभु प्रेम का उपहार है
अलमोल मुल्य न कोई प्यापार है
समय के अनुरूप है चलना हमको
प्रतिकूल दिशा से जीवन की हार है
_____________अभिषेक शर्मा

बीत गई वो घडी
















समय के अनुरूप अपनी है कहानी 
 मौसम की देखो कैसी है मनमानी 
कोहरे की चादर में सिमटा उजाला
ठंड में ठिठुरती ये रातें है अनजानी
 शांत पडा यह आलम लगे वीरानी
 शीत लहर से छुपने लगे जिन्दगानी
 देर तक अब तु न चल ऐ मुसाफिर
बीत गई वो घडी अब न लगे सुहानी
_______________अभिषेक शर्मा

चुनौती


गलतियों से सीख कर जीवन को मैं पहचान गया 
 विफलता के अज्ञान को समय अनुरूप जान गया
नही डर मुझ को जीवन की आगामी चुनौती से
अनुभव के क्षणों से जीवन पथ का हो भान गया
सफलता के कार्य से मिले वो अपना अधिकार है
कठिनाई के क्षणों में देखो जीवन की ये हुंकार है
 बीत गया वो गत, भविष्य को तुम्हे है निखारना
छोड दो अपना झूठा अहंकार जीवन की ये हार है
अभिषेक शर्मा

पिरामिड

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1
है 
मन 
चंचल 
भटकता 
न ठहरता 
ओझल है लक्ष्य
जीवन की समाप्ति 
2
है 
जन 
विचार
दिशा ज्ञान
भाग्य की रेखा 
निरंतर लुप्त 
व्यर्थ मानव धर्म
3
है 
सेवा 
दायित्व
मानवता 
चरित्रावान 
करूणा हदय
सार्थक हो जीवन
....अभिषेक शर्मा
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Thursday, January 19, 2017

पद
















सपने देखे जाने के संसद में 
फस से गये हम अपने पद मे 
नादान जिन्हें समझ रहे थे हम
लगता बड़े हो गये है वो कद मे
__________ अभिषेक शर्मा

Sunday, January 8, 2017

"सवेरा"
























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नये वर्ष का एक नया सफर है
बीते गम अब खुशियों की लहर है
अपनो के दिलों मे प्यार का पहरा
जीवन के रंगों का हर रंग सुनहरा
चमक रोशनी की जैसे हो दीवाली 
हर पल जीवन मे छाये हरियाली
सारी उलझनों के हुऐ समझौते
प्यार के आँसू पलकों को भिगोते 
 प्रेम के दीपक से मिटा अन्धेररा 
प्रभात की किरण से हुआ सवेरा 
"सवेरा"
____ _______अभिषेक शर्मा

साइकिल की सवारी

















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देखो कैसी ये साइकिल की सवारी है
दो पहियों मे अब न वो साझेदारी है
सीट नयी पर गति वही है पुरानी
जैसे मांगती कोई अपनी उधारी है
_____________अभिषेक शर्मा

सुखद पल "हाइकु"





















सुखद पल "हाइकु"
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नीला अमर
महकती बगिया

सुखद पल


बहता पानी
नदिया के किनारे
सुखद पल

चाँद सूरज
धरती के पहरे
सुखद पल

ईश्वर भक्ति
मन है आनंदित
सुखद पल
 अभिषेक शर्मा
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गुल्लक

























" गुल्लक "

बन्द देह की गुल्लक में अपनी काया है 
छोडो दौलत का मोह झूठी यह माया है 
हसरतों से उपर के सपने होते है झूठे
लालच से उत्पन्न हुई ये कैसी छाया है 
निर्धन को न मिलती दो वक्त की रोटी 
खेल दौलत का यह किसने सिखाया है 
आसमां की चादर में लिपटी ये गरीबी 
घर धनवालों का आज किसने सजाया है 
मासूमियत भी करती हुई बाल मजदुरी 
घूट जहर का मासूमों को किसने पिलाया है 
__________________अभिषेक शर्मा