बीत गई वो घडी
समय के अनुरूप अपनी है कहानी मौसम की देखो कैसी है मनमानी
कोहरे की चादर में सिमटा उजाला
ठंड में ठिठुरती ये रातें है अनजानी
शांत पडा यह आलम लगे वीरानी
शीत लहर से छुपने लगे जिन्दगानी
देर तक अब तु न चल ऐ मुसाफिर
बीत गई वो घडी अब न लगे सुहानी
_______________अभिषेक शर्मा
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