Monday, October 31, 2016
Wednesday, October 26, 2016
Tuesday, October 25, 2016
प्रेम
दिल की पीड़ा में हर रोज अब जल रहा
हूँ मैं
प्रेम की आग मे तप के कैसा ढल रहा हूँ
मैं
इतंजार के तीर ने मुझे कर दिया है
घायल
हर पल इश्क से जिंदगी को छल रहा हूँ
मैं
प्रेम से ही मुश्किलों को दूर कर रहा
हूँ मैं
अपनों के बीच में भी कैसे भला डर रहा
हूँ मैं
इस आग में जलने का अब गम नही है मुझे
प्रेम से ही अपनों के कष्टों को हर
रहा हूँ मैं
________________अभिषेक शर्मा
अभि
Saturday, October 22, 2016
Tuesday, October 4, 2016
Sunday, October 2, 2016
महात्मा
*********************************************************
महात्मा का सम्पूर्ण जीवन पूर्ण अहिंसावादी था
पतली दुबली काया पोशाक मे उन के खादी था
सत्य का रूप देश प्रेम ही था उनका धरम-करम
उच्च विचारक वो दिव्यात्मा सच में आशावादी था
अभिषेक शर्मा अभि
**********************************************************
स्वंयरचित रचना सर्वाधिकार प्राप्त
Saturday, October 1, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)